Hello Dear Friends,
“मैं जिन्दगी का साथ निभाता चला गया…..हर फिक्र को धुंए में उड़ाता चला गया…..” यह song आपने न जाने कितनी ही बार सुना ही होगा। “हम दोनों” फिल्म का यह song हिन्दी सिनेमा के बेहतरीन songs में से एक माना जाता है और इसकी वजह है इसका उस शख्स के ऊपर फिल्माया जाना जो इसके हर एक बोल को सार्थक करता हो। यह शख्स कोई और नहीं हिन्दी सिनेमा के सदाबहार अभिनेता देवानंद साहब थे। Bollywood में कितने ही Actors का दौर आया और गया, लेकिन इनमें देवानंद एकमात्र ऐसे Actor थे जिन्होंने खुद को कभी उम्र के बंधन में बंधने नहीं दिया। वक्त की करवटें कभी भी उनकी हस्ती पर अपनी सिलवटें नहीं छोड़ पाईं। फिल्मी पर्दे पर हमेशा रुमानी दिखने वाले देवानंद साहब खुद को हमेशा सदाबहार ही मानते थे। और शायद यही वजह रही है कि उम्र के आखिरी पड़ाव पर भी जहां अन्य सितारे दादा और नाना के किरदार करते हैं वहीं देवानंद साहब ने लीड रोल में ही खुद को पेश किया। उनकी आखिरी फिल्म “चार्जशीट” में भी वह बतौर Lead Actor ही पर्दे पर दिखे। इस फिल्म को करते हुए उनकी उम्र 88 साल की थी।
झुक-झुक कर संवाद अदायगी का खास अंदाज हो, या फिर फीमेल फैन्स की बात… देव आनंद अपने समकालीन एक्टरों से हमेशा अलग थे। पर्दे पर रोमांस की जो परिभाषा उन्होंने रची थी आज भी अभिनेता उसे समझने की कोशिश करते हैं। पर्दे पर जिस तरह का रोमांस देवानंद साहब अपनी नायिकाओं के साथ करते थे असल जिंदगी में भी उनका प्रेम जीवन कुछ ऐसा ही था। प्यार में चोट खाए, धर्म और पैसे की वजह से प्यार का अधूरा रहना, नायिका का अंगूठी को सागर में फेंकना, अपनी प्रेमिका को किसी और की बाहों में देखना और ना जाने ऐसे कितने मौके देव साहब की जिंदगी में आए जो कभी सिर्फ फिल्मी पर्दे के दृश्य लगा करते थे। बेशक आज देवानंद हमारे बीच नही हैं पर उनकी यादें आज भी हर हिन्दुस्तानी और हिन्दी सिनेमा के दर्शकों के मन में ताजा हैं। आज के दिन यानि 26 सितंबर को देवानंद साहब की जयंती है। तो चलिए हिन्दी सिनेमा के इस सदाबहार अभिनेता की जिंदगी की कुछ खास और अनछुये पहलुओं के बारे में जानते है।
देवानंद का प्रारंभिक जीवन
देवानंद का जन्म अविभाजित पंजाब के गुरदासपुर ज़िले (अब पाकिस्तान में ) के एक मध्मयवर्गीय परिवार में 26 सितंबर, 1923 को हुआ था। उनका बचपन का नाम देवदत्त पिशोरीमल आनंद था। उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में अपनी स्नातक की शिक्षा 1942 में लाहौर के मशहूर गवर्नमेंट कॉलेज से पूरी की। देव आनंद आगे भी पढ़ना चाहते थे, लेकिन उनके पिता ने दो टूक शब्दों में कह दिया कि उनके पास उन्हें पढ़ाने के लिए पैसे नहीं हैं। अगर वह आगे पढ़ना चाहते हैं तो नौकरी कर लें। देव आनंद को अपनी पहली नौकरी Military Censor office में एक लिपिक के तौर पर मिली जहां उन्हें सैनिकों द्वारा लिखी चिट्ठियों को उनके परिवार के लोगों को पढ़ कर सुनाना पड़ता था। इस काम के लिए देव आनंद को 165 रूपये मासिक वेतन के रूप में मिला करता था जिसमें से 45 रूपये वह अपने परिवार के खर्च के लिए भेज दिया करते थे।
लगभग एक वर्ष तक Military Censor में नौकरी करने के बाद और परिवार की कमजोर आर्थिक स्तिथि को देखते हुए वह 30 रूपये जेब में लेकर पिता के मुम्बई जाकर काम न करने की सलाह के विपरीत अपने बड़े भाई चेतन आनंद के पास मुंबई आ गए। चेतन आनंद उस समय भारतीय जन नाटय संघ इप्टा से जुड़े हुए थे। उन्होंने देव आनंद को भी अपने साथ इप्टा में शामिल कर लिया। इस बीच देव आनंद ने नाटकों में छोटे-मोटे रोल किए। यहीं से उनका और बॉलीवुड का सफर भी शुरू हो गया। Dev Anand देव और उनके छोटे भाई विजय को फिल्मो में लाने का श्रेय उनके बड़े भाई चेतन आनन्द को जाता है और गायक बनने का सपना लेकर मुम्बई पहुचे देव आनन्द अभिनेता बन गये।
देवानंद का कॅरियर
देव आनंद को पहला ब्रेक 1946 में प्रभात स्टूडियो की फिल्म “हम एक हैं” से मिला जो फ्लॉप रही। लेकिन इस फिल्म के निर्माण के दौरान प्रभात स्टूडियो में उनकी मुलाकात गुरूदत्त से हुई जो उस समय फिल्मों में कोरियोग्राफर के रूप में अपनी पहचान बनाना चाह रहे थे। इन दोनों की अच्छी दोस्ती हो गयी थी। वर्ष 1948 में प्रदर्शित फिल्म “जिद्दी” देव आनंद के फिल्मी कॅरियर की पहली हिट फिल्म साबित हुई। इस फिल्म की कामयाबी के बाद उन्होंने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कदम रख दिया और 1949 में उन्होंने “नवकेतन बैनर” की स्थापना की और वर्ष 1950 में अपनी पहली फिल्म “अफसर” का निर्माण किया जिसका निर्देशन उनके बड़े भाई चेतन आनन्द ने किया। इस फिल्म के लिए उन्होंने उस जमाने की जानी मानी अभिनेत्री सुरैया का चयन किया जबकि अभिनेता के रूप में देवानंद खुद ही थे लेकिन यह फिल्म चली नहीं। इसके बाद उनका ध्यान उनके दोस्त गुरूदत्त को किए गए वायदे की तरफ गया। सन 1951 में उनके बैनर की अगली फिल्म “बाजी” का निर्देशन उनके दोस्त गुरुदत्त ने किया जिसने उनकी किस्मत बदल दी। “बाजी” फिल्म की सफलता के बाद देव आनंद फिल्म इंडस्ट्री में एक अच्छे अभिनेता के रूप में शुमार होने लगे। फिर गुरुदत्त निर्देशित “जाल” में भी देव ने काम किया। इस फिल्म के निर्देशन के बाद गुरुदत्त ने यह फैसला किया कि वह केवल अपनी प्रोडक्शन हाउस की फिल्मों का निर्देशन करेंगे। बाद में देवानंद ने प्रोडक्शन हाउस की फिल्मों के निर्देशन की जिम्मेदारी अपने छोटे भाई विजय आनंद को सौंप दी। विजय आनन्द ने देवानंद की कई फिल्मो का निर्देशन किया जिनमे ‘काला बाजार’, ‘तेरे घर के सामने’, ‘तेरे मेरे सपने’ तथा ‘छुपा रुस्तम’ प्रमुख है।
देवानंद प्रख्यात उपन्यासकार R.K. Narayanan से काफी प्रभावित थे और उनके उपन्यास ‘गाइड’ पर फिल्म बनाना चाहते थे। R.K. Narayanan की permission के बाद देव आनंद ने Hollywood के सहयोग से हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में फिल्म गाइड का निर्माण किया जो देवानंद के सिने कॅरियर की पहली रंगीन फिल्म थी। इस फिल्म के लिए देवानंद को उनके जबर्दस्त अभिनय के लिए Best Film Actor का फिल्म फेयर पुरस्कार भी दिया गया। वर्ष 1970 में फिल्म “प्रेम पुजारी” के साथ उन्होंने निर्देशन के क्षेत्र में भी कदम रख दिया। हालांकि यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह से फ्लॉप रही लेकिन इसके बावजूद भी उन्होंने हिम्मत नही हारी। इसके बाद वर्ष 1971 में फिल्म “हरे रामा हरे कृष्णा” का भी निर्देशन किया जिसके ‘दम मारो दम’ गीत ने उस दौर में धूम मचा दी थी। इस फिल्म की कामयाबी के बाद देव एक बेहतरीन निर्देशक के रूप में स्थापित हो गये और उन्होंने अपनी कई फिल्मो में निर्देशन किया जिनमे “हीरा पन्ना”, “देस परदेस”, “लूटमार”, “स्वामी दादा”, “अव्वल नम्बर”, “मै सोलह बरस की”, “गैंगस्टर”, और “हम नौजवान” जैसी फिल्मे शामिल है। देवानंद ने कई नई अभिनेत्रियों को पर्दे पर उतारा। “हरे रामा हरे कृष्णा” के जरिये उन्होंने जीनत अमान की खोज की। टीना मुनीम, नताशा सिन्हा एवं एकता जैसी अभिनेत्रियो के पीछे भी वही थे।
देवानंद और रोमांस
कहते हैं बॉलिवुड में अगर कोई असली रोमांटिक हीरो है तो वह हैं सिर्फ देवानंद। ना सिर्फ पर्दे पर बल्कि असल जिंदगी में भी देवानंद की दिल्लगी का कोई सानी नहीं है। अभिनेत्रियों के साथ अपने रोमांस को लेकर भी वे चर्चा में रहे। चाहे सुरैया हो या जीनत अमान दोनों के साथ उनके प्रेम के चर्चे हवा में तैरते रहे। खुद देवानंद भी मानते हैं कि सुरैया उनका पहला प्रेम थीं और जीनत को भी वह पसंद करते थे। देवानंद के जानदार और शानदार अभिनय की बदौलत परदे पर जीवंत आकार लेने वाली प्रेम कहानियों ने लाखों युवाओं के दिलों में प्रेम की लहरें पैदा कीं लेकिन खुद देवानंद इस लिहाज से जिंदगी में काफी परेशानियों से गुजर।
फिल्म “अफसर” के निर्माण के दौरान देव आनंद का झुकाव फिल्म अभिनेत्री सुरैया की ओर हो गया था। एक गाने की शूटिंग के दौरान देव आनंद और सुरैया की नाव पानी में पलट गई जिसमें उन्होंने सुरैया को डूबने से बचाया। इसके बाद सुरैया देव आनंद से बेइंतहा मोहब्बत करने लगीं। देव और सुरैया दोनों एक-दूसरे को बहुत चाहते थे, यह बात न केवल फिल्म इंडस्ट्री के लोग, बल्कि फिल्मी दर्शक भी अच्छी तरह जानते थे। सुरैया-देव आनंद ने एक साथ सात फिल्मों में काम किया। सभी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर खूब चलीं। “जीत” फिल्म के सेट पर देव आनंद ने सुरैया से अपने प्यार का इजहार किया और सुरैया को तीन हजार रुपयों की हीरे की अंगूठी दी। लेकिन सुरैया की दादी की इजाजत न मिलने पर यह जोड़ी परवान नहीं चढ़ सकी। उन्होंने देव आनंद को सुरैया से दूर रहने की हिदायत दी और पुलिस में शिकायत दर्ज करने की धमकी तक दे डाली। नतीजतन दोनों ने अलग होने का फैसला किया। इसके बाद दोनों ने एक भी फिल्म में साथ काम नहीं किया और ताउम्र सुरैया ने किसी से शादी नहीं की। कहा जाता है कि दोनों के अलग होने के फैसले के बाद सुरैया ने देव आनंद की दी हुई अंगूठी को समुद्र के किनारे बैठकर समुद्र में फेंक दिया। देव आनंद ने कभी भी अपने और सुरैया के रिश्ते को किसी से छुपाया नहीं। यही नहीं अपनी किताब रोमांसिंग विद लाइफ में देव आनंद ने अपने और सुरैया के रिश्ते के बारे में भी बताया और यह बात भी लिखी कि, “सुरैया के साथ अगर जिंदगी होती तो वो कुछ और होती………”।
बॉलीवुड के सदाबहार हीरो देवानंद फिल्म “हरे रामा हरे कृष्णा” से रूपहले पर्दे पर जलवे बिखेरने वाली अभिनेत्री जीनत अमान की मोहब्बत में एक समय खो से गए थे। लेकिन जल्दी ही उनका दिल टूट गया जब एक पार्टी में उन्होंने राज कपूर को जीनत से गलबहियां करते देखा। जीनत और सुरैया के प्यार में हारने के बाद देव साहब को सहारा मिला फिल्म “बाजी” की हिरोइन कल्पना कार्तिक का। फिल्म के दौरान दोनों दोस्त बने और प्यार के बीज भी फूट गए। वर्ष 1954 में देव आनंद ने उस जमाने की इस मशहूर अभिनेत्री कल्पना कार्तिक से शादी कर ली। लेकिन कुछ समय बाद ही दोनों अलग हो गये। वर्ष 2005 में जब सुरैया का निधन हुआ तो देव आनंद उन लोगों में से एक थे जो उनके जनाजे के साथ थे।
देवानंद का निजी जीवन –
देवानंद ने कल्पना कार्तिक के साथ शादी की थी लेकिन उनकी शादी अधिक समय तक सफल नहीं हो सकी। दोनों साथ रहे लेकिन बाद में कल्पना ने एकाकी जीवन को गले लगा लिया। अन्य फिल्मी अभिनेताओं की तरह देवानंद ने भी अपने बेटे सुनील आनंद को फिल्मों में स्थापित करने के लिए बहुत प्रयास किए लेकिन सफल नहीं हो सके। सदाबहार फिल्म अभिनेता देवानंद ने हिंदी फिल्म जगत में 1951 की बाजी से लेकर 2011 की चार्जशीट तक छह दशकों का लम्बा सफर तय किया। उम्र को पीछे छोड़ देने वाले देवानंद ने हिंदी सिनेमा को श्वेत-श्याम युग से तकनीकी रंगीन युग में परिवर्तित होते देखा और अपने पीछे एक ऐसी अनोखी विरासत छोड़ी जो सिनेमाई कार्यो से कहीं आगे निकल चुकी है। देवानंद की जिंदगी पल-पल बहती कलकल नदी थी। उसमें मोड़ तो खूब आए, लेकिन कभी विराम नहीं आया। अपनी जिंदगी के आखिरी पल तक वह काम करते रहे। काम के प्रति ऐसी श्रद्धा शायद ही किसी इंसान में दिखाई दे। उनके नाम के साथ हमेशा सदाबहार लगा रहा और इस शब्द को उन्होंने अपनी फिल्मों के द्वारा सच भी साबित किया।
September 2007 में देवानंद ने अपनी Autobiography लिखी और प्रकाशित की जिसका नाम था “Romancing with Life” जिसे एक birthday party में उस वक़्त के Indian Prime Minister Dr. Manmohan Singh ने launch किया था।
देव आनंद के काले कोट का जादू –
अपने दौर में रूमानियत का प्रतिमान और Fashion Icon रहे देवानंद को लेकर यूं तो कई किस्से मशहूर हैं, लेकिन इन सबसे खास उनके काले कोट पहनने से जुड़े किस्से हैं। बात उस समय की है जब देवानंद अपने अलग अंदाज और बोलने के तरीके के लिए काफी मशहूर थे। देवानंद ने एक दौर में White Shirt और Black Coat को इतना Popular कर दिया था कि लोग उन्हें Copy करने लगे। लड़कियां उनकी इस कदर दीवानी थी कि वो सिर्फ उनकी एक झलक पाने के लिए कुछ भी कर सकती थी। उनके White Shirt और Black Coat के फैशन को तो जनता ने खासकर लड़कियों ने जैसे अपना ही बना लिया था।
और इसी समय एक ऐसा वाकया भी देखने को मिला जब Court ने उनके Black Coat को पहन कर घूमने पर पाबंदी लगा दी। इसकी वजह बेहद दिलचस्प और थोड़ी अजीब भी थी। दरअसल कुछ लड़कियों के उनके काले कोट पहनने के दौरान आत्महत्या की घटनाएं सामने आईं। वजह थी कुछ लडकियों का उनके काले कोट के प्रति आसक्ति के कारण आत्महत्या कर लेना। इससे एक बात साफ थी कि देवानंद का किरदार हो या उनका पहनावा हमेशा सदाबहार ही रहा। ऐसा शायद ही कोई एक्टर हो जिसके लिए इस हद तक दीवानगी देखी गई और कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा।
देव आनंद को मिले सम्मान और पुरस्कार –
देव आनंद को अपने अभिनय के लिए दो बार फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। देव आनंद को सबसे पहला फिल्म फेयर पुरस्कार वर्ष 1950 में प्रदर्शित फिल्म “काला पानी” के लिए दिया गया। इसके बाद वर्ष 1965 में भी देव आनंद फिल्म “गाइड” के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किए गए। वर्ष 2001 में देव आनंद को भारत सरकार की ओर से “पद्मभूषण” सम्मान प्राप्त हुआ। वर्ष 2002 में उनके द्वारा हिन्दी सिनेमा में महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुए उन्हें “दादा साहब फाल्के” पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
देव आनंद और राजनीति –
सिनेमा जगत में सदाबहार माने जाने वाले देवानंद साहब ने कभी राजनीति में भी कदम रखा था। मौका था देश में Emergency (आपातकाल) का। जून, 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जब देश में आपातकाल लगाने का एलान किया तो देवानंद ने फिल्म जगत के अपने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर उसका पुरजोर विरोध किया था। बाद में जब आपातकाल खत्म हुआ और देश में चुनावों की घोषणा हुई, तो उन्होंने अपने प्रशंसकों के साथ जनता पार्टी के चुनाव प्रचार में भी हिस्सा लिया। बाद में उन्होंने “National Party of India” के नाम से एक राजनीतिक दल की भी स्थापना की, लेकिन कुछ समय बाद उसे भंग कर दिया। एक जमाना वह था, जब देवानंद की तूती बोलती थी। इसलिए उनकी लोकप्रियता की ऊंचाई की कल्पना आज के अभिनेता नहीं कर सकते। अपने आकर्षण से किंवदंती बन चुके देवानंद ने दशकों तक दर्शकों के दिलों पर राज किया है।
देव आनंद की मृत्यु –
अपने चाहने वालों को हमेशा खुश देखने की हसरत ही एक वजह थी जो देवानंद साहब को अपने आखिरी समय में देश से दूर ले गई। देवानंद नहीं चाहते थे कि भारत में उनके चाहने वाले उनका मरा मुंह देखें इसलिए उन्होंने जिंदगी के आखिरी पल लंदन में बिताने का फैसला किया। हर दिल अजीज इस अजीम अदाकार का लन्दन में दिल का दौरा पड़ने से 3 दिसम्बर 2011 को 88 वर्ष की उम्र में निधन हो गया लेकिन उनका नाम बॉलीवुड के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में सदैव लिखा रहेगा।
||Thank You||
तो दोस्तों ये post थी “Biography of Devanand in Hindi – हिन्दी सिनेमा के सदाबहार अभिनेता देवानंद के बारे में हिन्दी में”। आपको यह Post कैसी लगी Please Comment करके मुझे बताये। आपके comments और सुझाव मेरे लिए बहुत आवश्यक तथा प्रेरणादायक होंगें। वैसे उम्मीद करता हूँ कि आपको यह Post पसंद आई होगी। दोस्तों अगर आपको यह post पसंद आये तो इसे बाकी दुसरे लोगों और अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करे साथ ही मेरे Facebook Page को Like करे। Dear Friends, मेरी जिम्मेदारी बनती है कि मैं आपको कुछ अच्छी और सही जानकारी प्रदान करू और अगर आप यहाँ से कुछ सीख रहे हो तो यह आपकी जिम्मेदारी बनती है कि उस जानकारी को निचे दिए गए links पर Click कर शेयर करे और अपने दोस्तों तक पहुँचाये।